अभ्यास प्रश्न

प्र) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।

1) मन भर आना – बहुत दुखी होना
विमला की आपबीती सुनकर मेरा मन भर आया।

2) कड़ी बात कहना – कठोर बात कहना
पिताजी की कड़ी बात सुनकर पूजा रोने लग गई।

अभ्यास प्रश्न

क) निम्नलिखित गद्य-खंड को पढ़कर पद्य-खंड को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

यह कैसी लाचारी है
कि हमने अपनी सहजता ही
एकदम बिसारी है
इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है
की फर्क जल्दी समझ में नहीं आता-
यह दुर्दिन है या सुदीन है।

प्रश्न- 1) यह पद्य-खंड किस कविता से लिया गया है?
          उ: यह पद्य-खंड ‘वक्त’ कविता से लिया गया है।

2) इस कविता के कवि का नाम क्या है?
उ: इस कविता के कवियत्री का नाम कीर्ति चौधरी है।

3) हमने कौन-सी बात बिसारी है?
: हमने अपनी सहजता बिसारी है।

4) सहजता बिसारे जाने पर कवयित्री किस उलझन में हैं?
उ: सहजता बिसारे जाने पर कवयित्री इस उलझन में हैं  कि उलझन में है कि वह उसे दुर्दिन माने या सुदिन।

ख) नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर 15-20 शब्दों में लिखिए।

1) अभिव्यक्ति के किन सीधे-साधे रूपों के उदाहरण ‘वक्त’ कविता में प्रस्तुत हैं?
उ: ‘वक्त’ कविता में खुश होना, दुखी होना, झुँझलाना, इत्यादि अभिव्यक्ति के सीधे-साधे रूपों का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

2) कवयित्री लाचारी का अनुभव क्यों करती है?
उ: आधुनिक स्पर्धात्मक युग में मानव ने अपनी सहजता ही एकदम बिसारी है इसलिए कवयित्री लाचारी का अनुभव करती हैं।

3) दुख-सुख के संबंध में किर्ति चौधरी क्या कहती हैं?
उ: कीर्ति चौधरी दुख-सुख के संबंध में कहती है कि मानव सुख और दुख जैसी भावनाओं को भूलकर निस्संग भावहीन होता जा रहा है।

ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए।

1) वक्त के साथ मनुष्य किन बातों को भूल गया है?
: आज के आधुनिक स्पर्धात्मक यंत्र-युग में मानव भी एक यंत्र जैसा व्यवहार कर रहा है। आज मनुष्य अपनी संवेदनशीलता खो बैठा है। वह अपनी सहज, मानवोचित, भावनाओं को भूलता जा रहा है। वक्त के साथ उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आया है। वह घृणा और प्यार, सुख और दुख जैसी मनोवचित भावनाओं को भूलता जा रहा है। मानव अपनी सहजता भी भूल गया है। हमारा जीवन इतना कठिन हो गया है कि फर्क जल्दी समझ में नहीं आता कि दुर्दिन है या सुदीन है।

2) ‘वक्त’ कविता के आधार पर यह स्पष्ट कीजिए कि हमारे जीवन में कैसी निस्संगता आ गई है?
: वक्त कविता में कवयित्री कीर्ति चौधरी ने दर्शाया है कि कैसे आज के आधुनिक यंत्र-युग में मानव भी मात्र एक यंत्र बनकर रह गया है। न ही उसमें मानवीय भावनाएँ हैं न ही परिस्थितियों का विश्लेषण करने का सामर्थ्य। वह न सुख में हँसता है, न दुख में दुखी होता है, न झुँझलाता है। वह अपनी सहज भावनाओं पर नियंत्रण खो बैठा है। सहजता के अभाव में यह फर्क करना कठिन हो गया है कि यह दुर्दिन है या सुदीन। दुख-सुख में इतनी निस्संगता आ गई है कि कड़ी बात कहो तो भी कोई बुरा नहीं मानता।